Rich Indian in Dubai: दुबई अमीर हिंदुस्तानियों का नया ठिकाना बन रहा है। लग्जरी लाइफस्टाइल की चाहत में भारतीय कारोबारी और उद्योगपति झुंड के झुंड चले जा रहे हैं दुबई की ओर। पिछले साल अगस्त में उद्योगपति मुकेश अंबानी ने दुबई में 8 करोड़ डॉलर में एक घर खरीदा। घर क्या, पूरा महल ही है। 10 बेडरूम, इनडोर और आउटडोर स्विमिंग पूल, बीच और प्राइवेट स्पा। अक्टूबर में उन्होंने नया रिकॉर्ड बना दिया, एक और डील में। ऐसे सौदों की असल जानकारी तो सामने आती नहीं है, लेकिन कुछ रिपोर्ट्स में बताया गया कि अंबानी ने दुबई में 16 करोड़ 30 लाख डॉलर में यह प्रॉपर्टी खरीदी। अंबानी तो अंबानी, बाकी भारतीय अमीर भी पीछे नहीं रहे। पिछले साल उन्होंने दुबई में कुल 4 अरब 30 करोड़ डॉलर के घर खरीद डाले थे।
भारतीय कारोबारियों को दुबई में बिजनेस बे का इलाका बहुत रास आ रहा है। कइयों की पसंद वह इलाका है, जहां बुर्ज खलीफा और दूसरी आसमान छूती इमारतें हैं। इन इलाकों में घर खरीदने वालों में करीब आधे लोग भारत के हैं। इनमें से अधिकतर दिल्ली-एनसीआर, अहमदाबाद, सूरत, हैदराबाद और पंजाब जैसी जगहों से हैं। दुबई में घर खरीदने वालों में करीब 40 प्रतिशत भारतीय ऐसे हैं, जो यूएई में रह रहे हैं। इनके अलावा करीब 20 प्रतिशत भारतीय खरीदार दुनिया के दूसरे इलाकों के हैं, जिन्होंने दुबई में घर खरीदे हैं। कई ऐसे अमीर भारतीय भी हैं, जो भारत के मेट्रो शहरों के बजाय दुबई में रहना पसंद कर रहे हैं, किराये के अपार्टमेंट्स में ही सही।
दुबई में भारत के लोग औसतन साढ़े तीन से चार करोड़ रुपये के मकान खरीद रहे हैं। रियल एस्टेट से जुड़े लोगों का कहना है कि ऐसी प्रॉपर्टी का मंथली रेंट 3 से साढ़े तीन लाख रुपये महीने का है। वर्ल्ड क्लास इंफ्रास्ट्रक्चर और दुनिया के दूसरे कारोबारी ठिकानों से बेहतर कनेक्टिविटी को देखते हुए कई लोग दुबई में रहना प्रेफर करने लगे हैं।
हाल यह है कि दुबई का मीना बाजार कमोबेश मुंबई जैसा लगने लगा है। वहां बिरयानीवाला एंड कंपनी है तो मिनी पंजाब रेस्टोरेंट और तनिष्क ज्वैलरी के शोरूम भी हैं। जितने अरबी बोलने वाले हैं, उतने ही हिंदी और मलयाली बोलने वाले। एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2022 में करीब 11 हजार ऐसी कंपनियां दुबई के बिजनेस चैंबर से जुड़ीं, जिनके मालिक भारतीय हैं। ऐसी कंपनियों की कुल संख्या 83 हजार बताई जा रही है। यूएई में करीब 35 लाख भारतीय रहते हैं। इन लोगों ने साल 2021 में कुल 20 अरब डॉलर की रकम भारत भेजी थी। यूएई में भारतीय दूतावास ने एक सर्वे किया। पता चला कि वहां बड़ी कंपनियों के 60 प्रतिशत चीफ फाइनैंशल ऑफिसर भारतीय हैं।
ऐसे हालात में भारत और दुबई के बीच एयर ट्रैवल भी बढ़ता जा रहा है। दुबई की एयरलाइन एमिरेट्स हफ्ते में 66 हजार लोगों को भारत से यूएई ले जा सकती है। एयरलाइन चाहती है कि उसे और 50 हजार सीटें जोड़ने की इजाजत दी जाए। इसकी बड़ी वजह भी है। मुंबई के कई बिजनेसमैन यूएई आते-जाते रहते हैं।
भारत के अमीरों के लिए दुबई का आकर्षण बढ़ने की अपनी खास वजहें हैं। दुबई आज फाइनैंशल हब बन चुका है। दुनिया के तमाम शहरों के लिए वहां से बेहतर कनेक्टिविटी है। जहां तक दुबई में घर खरीदने के सौदे बढ़ने की बात है तो इसके पीछे टैक्स सिस्टम का भी हाथ है।
यूएई में पर्सनल टैक्स का सिस्टम ही नहीं है। भारत में लेकिन इनकम टैक्स रेट 40 प्रतिशत तक है। भारत में कॉरपोरेट इनकम टैक्स का मामला काफी जटिल भी है। कानूनी मोर्चे पर भी भारत और यूएई में काफी अंतर है। मोटे तौर पर यूएई में इस्लामिक कानून लागू हैं। इसके नियम काफी सख्त हैं। लेकिन यूएई में कमर्शियल कोर्ट भी हैं। ये अदालतें अंतरराष्ट्रीय मानकों के हिसाब से काम करती हैं और इनका रुख काफी उदार रहता है। यूएई का जो मिजाज है, वह सभी धर्मों को जगह देने वाला बन गया है। अबू धाबी में कुछ महीने पहले एक विशाल हिंदू मंदिर बनाया गया था। उसके साथ के कॉम्प्लेक्स में मुस्लिम, क्रिश्चियन और यहूदी लोगों के पूजा घर भी हैं।
भारतीय उद्योगपतियों और कारोबारियों को यूएई से अपने करीबी संपर्कों का फायदा भी मिल रहा है। साल 2020 में मुकेश अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज (RIL) ने अपने तमाम कारोबारों के लिए बड़े पैमाने पर पैसा जुटाया। उनकी कंपनियों में अरबों डॉलर निवेश करने वालों में यूएई के सरकारी वेल्थ फंड शामिल थे। कंसल्टेंसी फर्म बेन की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2018 से 2022 के बीच यूएई के सरकारी वेल्थ फंडों और प्राइवेट इक्विटी कंपनियों ने भारत में 34 अरब डॉलर निवेश किए थे।
पिछले साल फाइनैंशल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) ने यूएई को ग्रे लिस्ट में डाल दिया था। एफएटीएफ एक अंतरराष्ट्रीय संस्था है। यह आतंकवादियों हो होने वाली फंडिंग और मनी लॉन्ड्रिंग पर नजर रखती है। एफएटीएफ के कदम से एक असर यह पड़ा कि कई लोग यूएई के बजाय सिंगापुर को पैसे घुमाने का जरिया बनाने लगे।
हालांकि इससे इतना फर्क नहीं पड़ा है कि दुबई की चमक घट जाए। यूएई भारतीय कारोबारियों के लिए फंडिंग का बड़ा जरिया बना हुआ है। वे दुबई को ऐसे ठिकाने के रूप में देख रहे हैं, जिसके जरिए वे ग्लोबल मार्केट्स से आसानी से जुड़ सकते हैं। दुबई के साथ वे अपना कायाकल्प करने का
भी ख्वाब देख रहे हैं।
दुबई पिछले करीब 50 वर्षों में तेजी से बदला है। 1960 और 1970 के दशक तक दुबई सहित यूएई से जो अंतरराष्ट्रीय व्यापार होता था, उसमें मुख्य रूप से हीरे-जवाहरात शामिल थे। इन्हें बॉम्बे के जरिए दूसरी जगहों पर भेजा जाता था। लेकिन आधी सदी बाद तस्वीर बदल चुकी है। अमीरात के चमकते मॉल दुनिया की बेशकीमती चीजों से भरे पड़े हैं। हीरे-जवाहरात के भारतीय व्यापारी अब दुबई में जमे रहते हैं।