Explained How Smartphones are Effecting Your Child Brain: बच्चों में स्मार्टफोन की लत इस हद तक बढ़ती जा रही है कि अब उनके शरीर के साथ साथ मेंटल हेल्थ पर भी इसका असर पड़ना शुरू हो गया है। ये समस्या इतनी बढ़ती जा रही है कि अब खुद मोबाइल कंपनियों के बड़े अधिकारी और नामी सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म्स के फाउंडर्स तक बच्चों को मोबाइल फोन समेत तमाम तरह की स्क्रीन से दूर रखने की सलाह दे रहे हैं। तो कैसे पड़ रही बच्चों को स्मार्टफोन की लत? इसका क्या असर पड़ रहा है उनकी सेहत पर और इससे कैसे बचा जाए? इन सब सवालों पर बात करने के लिए आज हमारे साथ हैं जानी मानी साइकोथेरपिस्ट काउंसलर डॉक्टर रागिनी सिंह।
डॉक्टर रागिनी, कितनी बड़ी समस्या मानती हैं आप बच्चों में स्मार्टफोन की बढ़ती जा रही इस लत को?
इस समय सोसाइटी का सबसे महत्वपूर्ण विषय ये है कि इंटरनेट पर बच्चों का जरूरत से ज्यादा रहना और उससे होने वाले नुकसान। इसका शौक बच्चों में दिन ब दिन और बढ़ता ही जा रहा है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि ये यूटिलिटी तो है ही। लेकिन बच्चे इसे किस तरीके से यूज करें कि यूटिलिटी बनी रहे और समस्याओं का सामना थोड़ा सा कम हो। इसमें हमारे सामने काफी चीजें हैं, जो मैं आपको बताऊंगी। लेकिन फिलहाल इस समस्या से हमको निजात जरूर मिल सकती है और मिलनी ही चाहिए।
मेरे पास इस तरह के बहुत मरीज आते हैं और खासकर जो कम उम्र के बच्चे हैं। इसमें 7 साल से 11 साल की उम्र तक या कभी कभी तो 5 साल की उम्र से लेकर14 साल तक के उम्र तक बच्चे इस पर बहुत ज्यादा निर्भर रहते हैं और उनके पैरंट्स बहुत परेशान रहते हैं। वो कई बार ये नहीं समझ पाते कि इसका कारण क्या है लेकिन जरूर मेरे पास इस तरह के पैरंट्स आते हैं। उनके बच्चे आते हैं। वो उसका सामना कर रहे हैं और मैं पूरी कोशिश करती हूं कि इस समस्या का समाधान कैसे किया जा सके, निजात कैसे मिले।
कोविड टाइम में तो ऑनलाइन क्लासेस की वजह से उन्हें मोबाइल फोन, लैपटॉप देना मजबूरी बन गया था, वहीं से इसने लत का रूप भी ले लिया क्या?
बिल्कुल, इसका ऐडिक्शन है बच्चों को। कोविड टाइम से केस बहुत ज्यादा बढ़े, क्योंकि उस वक्त एक मजबूरी भी हो गयी थी कि बच्चे ऑनलाइन ही पढ़ाई कर रहे हैं और हर वक्त उनके साथ इंटरनेट रहता था। कई बार कैमरा ऑफ होता था और उसकी आड़ में बच्चे कुछ गेम्स खेल रहे हैं या कुछ चैट कर रहे हैं। फेसबुक और तमाम उस तरह के प्रोग्राम्स के साथ जुड़े रहते थे। पढ़ाई में तो वो इतना दमदार नहीं हो पा रहे थे, लेकिन इसकी लत लगती जा रही थी।
कई पैरंट बहुत केयरफुल भी हैं अपने बच्चों के लिए। लेकिन एक तबका ऐसा भी है जो बहुत लापरवाही बरतते हैं। उनके बच्चे किस तरीके से मोबाइल के साथ जुड़े हुए हैं, कितना जुड़े हैं, उसकी देखरेख में वो बिल्कुल हिस्सेदारी नहीं लेते। बल्कि लापरवाही के साथ उनके हाथ में मोबाइल रख देते हैं। वो इंटरनेट का मिसयूज समय समय पर करते रहते हैं। जब पैरंट्स उनके साथ कम टच में हैं या बच्चे की भी रुचि बहुत ज्यादा है तो ऐडिक्शन तो उनके अंदर होना लाजमी ही है। इस तरह की एक गहरी समस्या है, जिससे हमारा समाज वाकई जूझ रहा है।